हर छात्र अपना जीवन-लक्ष्य निर्धारित करे
आचार्य डा0 प्रदीप द्विवेदी
‘‘मानव सेवा रत्न से सम्मानित’’
(वरिष्ठ सम्पादक-इंडेविन टाइम्स)
विद्यार्थी जीवन वह स्वर्णिम काल है जब उमंगों, आकांक्षाओं से भरपूर मानवी व्यक्तित्व कुछ न कुछ ग्रहण करने को लालायित रहता है। नई कल्पनाएं अंकुरित होती हैं, नई आशाएं कोंपलों की भांति उग आती हैं। नई उपलब्धियों की कलियां फूल बनकर खिलखिलाती हैं। सीखने, कुछ जानने, कुछ बनने का सतत सार्थक प्रयास इसी समय में होता है। प्रत्येक छात्र को यह अनुभव करना चाहिए कि वह एक ऐसी अवधि से होकर गुजर रहा है, जो उसके भाग्य और भविष्य निर्माण करने की निर्णायक भूमिका अदा करेगी। इन्हीं दिनों श्रेष्ठ विचार, सद्भावनाओं एवं सत्प्रवृत्तियों का अभ्यास किया जाता रहे तो उसका प्रभाव जीवन भर बना रहता है और सुख-शांति की संभावनाएं साकार होती हैं।
इन्ही दिनों मित्रां का आकर्षण अपनी चरम सीमा पर रहता है। अच्छे साथी मिले तो विकास एवं प्रसन्नता की वृद्धि में सहायता ही मिलती है। हर समझदार छात्र का कर्तव्य है कि मित्रता से पूर्व हजार बार सोचे। सच्चरित्र मित्रों, श्रेष्ठ पुस्तकों और सर्वशक्तिमान परमात्मा का ही संग करे। सद्विचारों की नोटबुक बनाएं। जब भी कोई अच्छी बात पढ़े, सुनें तो नोट करें। समय-समय पर दोहराएं। आदर्श व्यक्तियों का, महापुरूषों का ध्यान व उनके चरित्र का चिन्तन मनन करें।
स्वास्थ्य-संरक्षण के लिये भी यही समय सबसे अधिक उपयुक्त होता है। प्राकृतिक नियमों, आहार-विहार, सोने-जागने आदि का यदि ठीक ध्यान रखा जाये तो तंदुरस्ती ऐसी बन जायेगी जो जीवन भर साथ देगी। अधिकतर अकुशल छा़त्र ही अनुशासनहीन हुआ करते हैं। पढ़ने-लिखने में उनका मन नहीं लगता। अच्छे विद्यार्थी के लक्षणों से रहित होने से गुरूजनों के प्रति श्रद्धा नहीं होती। ऐसे छात्र आगामी जीवन के उत्तरदायित्व से अनभिज्ञ रहते हैं, जीवन का कोई विशेष लक्ष्य नहीं रखते। इसी प्रकार की मानसिक शून्यताओं से जन्मी हीनभावना को दबाने के लिये अकुशल एवं अयोग्य छात्र अनुशासनहीनता को शान समझने लगते हैं। जिन विद्यार्थियों के लक्षण पढ़ने के होते हैं, वे पढ़ाई के सिवाय बेकार की खुराफातों में नहीं पड़ते।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिये प्रत्येक छात्र का अपना एक लक्ष्य, एक उद्वेश्य होना आवश्यक है। सबसे पहले अपने जीवन में लक्ष्य का, उद्वेश्य का निर्धारण करो। जीवन में क्या बनना चाहते हो, क्या करना चाहते हो? फिर इस लक्ष्य को पाने के लिये दृढ़ संकल्प के साथ जुट जाओ। मन में यह पक्का विश्वास लेकर चलो कि सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। निरन्तर लक्ष्य की प्राप्ति की धुन सवार रहे। छात्र जीवन के इस स्वर्णिम दौर को व्यर्थ न जाने दें। अपने लक्ष्य को महान सामाजिक उद्वेश्यों से जोड़ें। बस फिर ये ध्यान रखें कि तमाम व्यवधानों के बावजूद मंजिल पानी है। समय निकल जाने पर पश्चाताप के सिवाय कुछ नहीं बचता है। जब आपकी सारी शक्तियां विचारों की, समय की, शरीर की, साधन की एक ही लक्ष्य की ओर लग जाती हैं, तो फिर सफलता प्राप्ति में संदेह नहीं रहता। अपनी शक्ति को पहचानों। अपने लक्ष्य को चुनौती के रूप में स्वीकारो।
याद रखिए कि आपका कोई भी लक्ष्य या उद्वेश्य क्यों न हो, आपकी अपनी शक्ति द्वारा ही पूरा हो सकता है। इधर-उधर बगलें झांकने से कुछ नहीं होगा। दूसरों पर भरोसा किया तो निराशा ही हाथ लगेगी। अपने उद्वेश्य को प्राप्त करने के लिये अपने पांवों पर खड़े होइए। अपने उद्वेश्य को प्राप्त करना चाहते हो तो उठो, अपनी शक्तियों को बढ़ाओ, अपने अन्दर लगन, कर्मण्यता और आत्मविश्वास पैदा करो। ऐसे दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ने पर आप पायेंगे कि कदम-कदम पर सफलता परछाईं की तरह आपके साथ है। जब आप अपनी सहायता खुद करेंगे तो ईश्वर भी आपकी सहायता करने के लिये दौड़े चले आयेंगे।
कमजोर विचारों का परित्याग कर दीजिए। स्मरण रखिए शक्ति का स्रोत साधनों में नहीं, संकल्प में है। सतत परिश्रम और एक लक्ष्य-सिद्धि से ही भाग्य बनता है। कभी भी विकट परिस्थिति से हार न मानों, बल्कि जितनी कठिन परिस्थति हो, उतना ही अधिक धैर्य और उत्साह अन्दर से प्रकट करो। संकल्प की मजबूती, धैर्य और साहस से व्यक्ति जीतता है। संकल्प उस दुर्ग के समान है, जो भयंकर व्यवधान, दुर्बल एवं डावांडोल परिस्थितियों से भी रक्षा करता है और सफलता के द्वार तक पहुंचने में मदद करता है। आपके पास ईश्वर प्रदत्त एक पूंजी है समय। समय संसार की अमूल्यवान सम्पदा है। यह वह मूल्यवान संपत्ति है, जिसकी कीमत पर संसार की कोई भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। समय के सच्चे पुजारी एक क्षण भी नष्ट नहीं होने देते। अपने एक-एक क्षण को हीरे-मोतियों से तोलने लायक बनाकर उसका सदुपयोग करते हैं और सफल और श्रेयाधिकारी महामानव बनते हैं।
समय की कमी का रोना कभी मत रोइए। संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसे ईश्वर ने 24 घंटे में एक पल भी कम समय दिया हो। जिसे आप समय की कमी कहते हो, वह समय की कमी नहीं, समय की अव्यवस्था है। इसी कारण समय अनुपयोगी कार्यों में लग जाता है। फिर वह समय उपयोगी कार्यों के लिये रह ही नहीं जाता। जो समय का सदुपयोग नहीं कर पाते, वे जीवन जीते नहीं, काटते हैं। नष्ट करते हैं। कोई कितने वर्ष जिया यह जीवन नहीं, किसने कितने समय का सदुपयोग कर लिया, वहीं जीवन की लम्बाई है। हर छात्र के जीवन में एक परिवर्तनकारी समय आया करता है, किन्तु आप उसके आगमन से अनभिज्ञ रहा करते हैं। इसीलिए हर बुद्धिमान छात्र हर क्षण को बहुमूल्य समझकर व्यर्थ नहीं जाने देता।
आलसी अथवा दीर्घसूत्री छात्र बहुधा किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते-करते ही सारी जिन्दगी खो देते हैं और उन्हें कभी भी उपयुक्त अवसर नहीं मिल पाता। आपको समय के छोटे से छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्व समझना चाहिए। जीवन में सफलता के लिये जहां परिश्रम एवं पुरूषार्थ की अनिवार्य आवश्यकता है, वहां समय का सामजंस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। श्रम तभी संपत्ति बनता है, जब वह समय में संयोजित कर दिया जाता है और समय तब ही सम्पदा के रूप में संपन्नता एवं सफलता ला सकता है, जब उसका श्रेय के साथ सदुपयोग किया जाता है। दुर्भाग्य का पश्चाताप उन्हें सहन करना पड़ता है जो लम्बी योजना बनाकर उस पर निश्चयपूर्वक चलते रहना तो दूर अपनी दिनचर्या बनाने की आवश्यकता नहीं समझते और बहुमूल्य समय को ऐसे ही आलस्य-प्रमाद की अस्त-व्यस्तता में गंवाते रहते हैं।
जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है। हमारा विकास और भविष्य हमारे विचारों पर निर्भर है। जैसा बीज होगा, वैसा ही पौधा उगेगा। जैसे विचार होंगे, वैसे कर्म बनेंगे और जैसे कर्म करेगें, वैसी परिस्थितियां बन जायेंगीं। इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य अपनी परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका निर्माता, नियंत्रणकर्ता और स्वामी है। आपके विचार आपके जीवन पर तो महान प्रभाव छोड़ते ही हैं, परन्तु दूसरों पर, आपसे सम्पर्क में आने वालों पर तथा आस-पास के वातावरण में भी अपना प्रभाव छोड़ते हैं। आपके विचार आपके व्यक्तित्व से, आपके हावभाव, व्यवहार से, आपके मुख की आभा और कान्ति से झलकते रहते हैं। यदि आप कोई अच्छा काम नहीं कर सकते, तो कम से कम गन्दे विचारों की दूषित बेल तो न बोइए।
प्रयत्न कीजिए कि आपके मन में दूसरों के प्रति दया, उदारता, सहायता, सेवा और स्नेहपूर्ण विचारों का ही उद्गम और पोषण हो। किसी के मन को दुर्बल मत बनाइए। किसी के मन को निष्क्रिय मत बनाइए। किसी को दीन-हीन मत बनाइए, न उनके प्रति ऐसे विचार अपने मन में आने दीजिए। आपको चाहिए कि आप एैसे व्यक्ति बनें, जो सफलता के प्रतिबिम्ब हैं, जो दूसरों के सहायक हैं, जो दूसरों को ऊंचा उठाने का यत्न करते हैं, जो दूसरों की सहायता करते हैं, जो दूसरों को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। आप प्रयत्न कीजिए कि आपसे आशा की किरणें फूटें, उदारता की सुगन्ध फैले, अनुत्साही जनों में उत्साह का संचार हो। आप सदा ही स्नेह व प्रेम का मन्द समीर फैलाएं जिससे लोगों के जीवन में बहार जा जाए।
विचारों के निर्माण में अच्छी पुस्तकों का विशेष महत्व होता है। हम जैसी पुस्तके पढ़ेंगे वैसे ही हमारे विचार बनेंगे। आज की परिस्थितियों में जैसे भी सम्भव हो सके हमें ऐसी पुस्तकें तलाश करना चाहिए जो प्रकाश एवं प्रेरणा प्रदान करने की क्षमता से संपन्न हो। उसे पढ़ने के लिये कम से कम एक घंटा निश्चित रूप से निकालिए। पढ़ने के बाद उन विचारों पर बराबर मनन करें। जब भी मस्तिष्क खाली रहे, यह सोचना आरम्भ कर देना चाहिए कि आज के स्वाध्याय में जो पढ़ा गया था, उस आदर्श तक पहुंचने के लिए हम क्या प्रयत्न करें। केवल पढ़ने का कार्य कर लेना ही स्वाध्याय नहीं है। स्वाध्याय वही कहा जायेगा जो हमारी जीवन की समस्याओं पर, आन्तरिक उलझनों पर प्रकाश डालता है और मानवता को उज्जवल करने वाली सद्प्रवृत्तियों को अपनाने की प्रेरणा देता है। अच्छी पुस्तकें सहज ही हमारी सच्ची मित्र बन जाती हैं। वे हमें सही रास्ता दिखाती हैं, जीवन पथ पर आगे बढ़ने में हमारा साथ देती हैं। याद रखों छात्रों पुस्तकें जाग्रत देवता हैं। ये अच्छी पुस्तके अन्धकार और उलझनों से भरे प्रत्येक चौराहे पर आपका मार्गदर्शन करेगीं, निराशा में आशा का संचार करेंगी।