Thursday, April 30, 2020

समय जो गुजर गया, फिर न मिलेगा 

आचार्य डा0 प्रदीप द्विवेदी
(वरिष्ठ सम्पादक- इडेविन टाइम्स)
मो0- 08115383332

हमारे पास ईश्वर द्वारा दी गयी एक अद्भुत पूंजी है और वह है समय। खोई हुई दौलत फिर कमाई जा सकती है। भूली हुयी विद्या फिर याद की जा सकती है। खोया स्वास्थ्य चिकित्सा के द्वारा लौटाया जा सकता है, पर खोया हुआ समय किसी भी प्रकार से लौटाया नहीं जा सकता। उसके लिये मात्र पश्चाताप ही शेष रह जाता है। यदि हम जीवन में समय-संयम, विचार-संयम, इन्द्रिय-संयम तथा अर्थ-संयम का अभ्यास करते रहें तो सफलता सहज ही हमारे कदम चूमेगी। समय संसार की सबसे मूल्यवान सम्पदा है। कहा जाता है कि परिश्रम से ही सफलता मिलती है, किन्तु परिश्रम का अर्थ भी समय का सदुपयोग ही है। समय पालन ईश्वरीय नियमों में सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रमुख नियम है। समय के सच्चे पुजारी एक क्षण भी नष्ट नहीं होने देते, अपने एक-एक क्षण को हीरे-मोतियों से तोलने लायक बनाकर उसका सदुपयोग करते हैं और सफल महामानव बनते हैं। समय की कमी का रोना कभी मत रोओ। संसार में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जिसे विधाता ने 24 घंटे में एक पल भी कम समय दिया हो। जिसे आप समय की कमी कहते हो, वह समय की कमी नहीं, समय की अव्यवस्था है। इसी कारण समय अनुपयोगी कार्यों में लग जाता है और उपयोगी कार्यों के लिये समय रह ही नहीं जाता। 
जो समय का सदुपयोग नहीं कर पाते, वे जीवन जीते नहीं, काटते हैं। नष्ट करते हैं। कोई कितने वर्ष जिया यह जीवन नहीं, किसने कितने समय का सदुपयोग कर लिया, वही जीवन की लम्बाई है। सबके जीवन में एक परिवर्तनकारी समय आता है, किन्तु हम उसके आगमन से अनभिज्ञ रहा करते हैं। इसीलिए हर बुद्धिमान मनुष्य हर क्षण को बहुमूल्य समझकर व्यर्थ नहीं जाने देते। आलसी अथवा दीर्घसूत्री व्यक्ति बहुधा किसी उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते-करते ही सारी जिन्दगी खो देते हैं और उन्हें कभी भी उपयुक्त अवसर नहीं मिल पाता। प्रत्येक मनुष्य को समय के छोटे से छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्व समझना चाहिए। जीवन में कुछ कर गुजरने वाले व्यक्तियों को अपना काम कल पर भूलकर भी नहीं टालना चाहिए। जो आज किया जाना है, उसे आज ही करें।
जीवन में सफलता के लिये जहां परिश्रम एवं पुरूषार्थ की अनिवार्य आवश्यकता है, वहां समय का सामंजस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। श्रम तभी सम्पत्ति बनता है, जब वह समय में संयोजित कर दिया जाता है और समय तब ही सम्पदा के रूप में सम्पन्नता एवं सफलता ला सकता है, जब उसका श्रम के साथ सदुपयोग किया जाता है। समय के प्रतिफल का सच्चा लाभ उन्हें मिलता है, जो अपनी दिनचर्या बना लेते हैं और नियमित रूप से निरन्तर उसी क्रम पर आरूढ़ रहने का संकल्प लेकर चलते हैं। नियम समय पर काम करने से अन्तर्मन को उस समय वही काम करने की आदत भी पड़ जाती है। जो जीवन से अधिक प्यार करते हों, वे व्यर्थ में एक क्षण भी न गवाएं।
उन्ही लोगों का मार्ग अवरूद्ध रहता है जो अपने ऊपर भरोसा नहीं करते। कितने ही व्यक्ति आत्महीनता की ग्रन्थि से ग्रसित होकर अच्छे-खासे साधन होते हुये भी अपने आपको गया गुजरा मानते हैं। कितने व्यक्ति हैं जो समय का मूल्य समझते है और उसका सदुपयोग करते हैं? अधिकांश लोग आलस्य और प्रमाद में पड़े हुये जीवन के बहुमूल्य क्षणों को यों ही बरबाद करते रहते हैं। एक-एक दिन करके सारी आयु बीत जाती है और अन्तिम समय वे देखते हैं कि उन्होने कुछ भी प्राप्त नहीं किया। हर बुद्धिमान व्यक्ति ने बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा परिचय यही दिया है कि उसने जीवन के क्षणों को व्यर्थ बरबाद नहीं होने दिया। अपनी समझ के अनुसार जो अच्छे से अच्छा उपयोग हो सकता था, उसी में उसने समय को लगाया। उसका यही कार्यक्रम अन्ततः उसे इस स्थिति तक पहुंचा सका, जिस पर उसकी आत्मा सन्तोष कर अनुभव कर पाये।
साधारण मनुष्य जिस समय को बेकार की बातों में खर्च करते रहते हैं, उसे विवेकशील लोग किसी उपयोगी कार्य में लगाते हैं। यही कारण है कि जो सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों को भी सफलता के उच्च शिखर पर पहुंचा देती है। जिसने इस तथ्य को समझा और कार्य रूप में उतारा, उसने ही यहां आकर कुछ प्राप्त किया है। अन्यथा तुच्छ कार्यों में आलस्य और उपेक्षा के साथ दिन काटने वाले लोग किसी प्रकार सांसे तो पूरी कर लेते हैं, पर उस लाभ से वंचित ही रह जाते हैं, जो मानव जीवन जैसी बहुमूल्य वस्तु प्राप्त होने पर उपलब्ध होनी चाहिए या हो सकती थी। समय अपनी गति से भाग रहा है। निरन्तर इस गतिमान इस समय के साथ कदम मिलाकर चलने पर ही मानव जीवन की सार्थकता है। इसके साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता है। पिछड़ना आपको सफलता से दूर हटा देता है। समय अमूल्य है। समय को जिसने बिना सोचे समझे खर्च कर दिया वह जीवन पूंजी भी यों ही गवां देता है। समय को व्यर्थ गवांकर आप एक प्रकार से अपनी आत्महत्या कर रहे हैं। इस धरोहर अधिकांश मनुष्य समुचित सदुपयोग नहीं करते। 
प्रकृति ने किसी को अमीर-गरीब नहीं बनाया, उसने तो सबको मुक्त हस्त से अपना अमूल्य वैभव लुटाया है। श्रम की सामर्थ्य तथा समय का अनुदान इन दो अस्त्रों से सुसज्जित करके उसने अपने सभी पुत्रों को जीवन के समरांगण में मस्तक पर तिलक कर विजयश्री वरण करने के लिये भेजा है। यह समय की सम्पदा धन से महत्वपूर्ण है। हमारा कीमती वर्तमान धीरे-धीरे भूतकाल बनता चला जा रहा है और हम देख समझ नहीं पाते। समय के साथ उपेक्षा करने वाले अपने साथ एक क्रूर मजाक करते हैं। हम धीरे-धीरे मर रहे हैं। जीवन की सम्पदा का एक-एक दाना एक-एक क्षण के साथ समाप्त होता चला जा रहा है। बूंद-बूद पानी टपकते रहने से फूटा हुआ घड़ा भी कुछ ही समय में खाली हो जाता है। जीवन की रत्न सम्पदा हर सांस के साथ घटती चली जाती है। महाकाल की उपासना का जो स्वरूप समझ सका है उसी को मृत्युंजयी बनने का सौभाग्य मिला है। किसी के भी साथ मजाक किया जा सकता है, पर महाकाल के साथ नहीं। 
समय के दुरूपयोग की भूल अपने भाग्य और भविष्य को ठुकराने-लतियाने की तरह है। जो समय व्यर्थ में ही खो दिया गया, उसमें यदि कमाया जाता तो अर्थ प्राप्ति होती। स्वाध्याय या सत्संग में लगाते तो विचार और सन्मार्ग को प्रेरणा मिलती। जगत का कालचक्र भी कहीं अनियमित नहीं। लोग और दिक्पाल, पृथ्वी और सूर्य, चन्द्र और अन्य ग्रह वक्त की गति से गतिमान हैं। प्रातःकाल की मुक्त वायु शरीर को शक्ति और पोषण प्रदान करती है। दिनभर देह स्फूर्ति और ताजगी से भरी रहती है। इस अवसर को गंवाना रोग और दुर्बलता को निमंत्रण देने से सकम नहीं है। फिर भी जो बिस्तरों में पड़े सोते रहते है, वे प्रातःकालीन ऊषीय रश्मियों, निर्दोष वायु से वंचित रह जाते हैं और उनका शरीर सुस्त और निस्तेज हो जाता है। 
आलस्य में समय गंवाने वाले कुसंग और कुबुद्धि के द्वार उल्टे रास्ते तैयार करते हैं। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। जब कुछ काम नहीं होता तो खुराफात ही सूझती है। जिन्हें किसी सत्कार्य या स्वाध्याय में रूचि नहीं होती, खाली समय में कुसंगति, दुर्व्यसन, ताश-तमाशे और तरह-तरह की बुराईयों में ही अपना समय बिताते हैं। समाज में अव्यवस्था का कारण कोई बाहरी शक्ति नहीं होती, अधिकांश बुराइयां और कलह बढ़ाने का श्रेय उन्हीं को है जो व्यर्थ में समय गंवाते रहते हैं। इसलिये यदि उसे सही विषय न मिले तो वह बुराइयां ही ग्रहण करता है और उन्हें ही समाज में बिखेरता हुआ चला जाता है। 
जगत में जितने भी महापुरूष हुए हैं उनकी महानता का एक ही आधार स्तम्भ है कि उन्होने अपने समय का पूरा-पूरा उपयोग किया। जिस समय लोग मनोरंजन, खेल-तमाशे में व्यस्त रहे हैं, व्यर्थ आलस्य प्रमाद में पड़े रहते हैं, उस समय महान व्यक्ति महत्वपूर्ण कार्यों का सृजन करते रहते हैं। समय बहुत बड़ा धन है। जवानी का समय तो विश्राम के नाम पर नष्ट करना ही घोर मूर्खता है क्योंकि यही वह समय है जिसमें मुनष्य अपने जीवन का, अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है। जिस प्रकार लोहा ठंण्डा पड़ जाने पर घन पटकने से कोई लाभ नहीं, उसी प्रकार अवसर निकल जाने पर मनुष्य प्रयत्न भी व्यर्थ चला जाता है। विश्राम करें, अवश्य करें। अधिक कार्यक्षमता प्राप्त करने के लिये विश्राम आवश्यक है, लेकिन उसका भी समय निश्चित करें। 
इस प्रकृति का प्रत्येक क्षण एक उज्जवल भविष्य की सम्भावना लेकर आता है। हर घड़ी एक महान मोड़ का समय हो सकती है। क्या पता जिस क्षण को हम व्यर्थ समझकर बरबाद कर रहे हैं, वह ही हमारे लिये अपनी झोली में कोई सुन्दर सौभाग्य की सफलता लाया हो। घनघोर घटाएं छाई रहने पर भी पक्षी प्रातःकाल होते ही चहचहाने लगते हैं और सूर्य अस्त होने का समय आते ही अपने घोंसले में सोने के लिये चले जाते हैं। जंगलों में सियारों के चिल्लाने का एक नियत समय निर्धारित है। वे हर रात को उसी समय बोलते हैं। चिड़ियां दाना चुगने उड़ जाती हैं पर साथ ही उन्हें यह भी याद रहता है कि घोंसले के बच्चों को किस समय भोजन देना है। वे चोंच में मुलायम बीज या कीड़े लेकर ठीक उसी समय आहार की प्रतीक्षा करते हैं। समय से कुछ मिनट पहले तक वे घोंसले में ऐसे ही पड़े सुस्ताते रहते हैं। निर्धारित समय में हेर-फेर करते रहने वाले बहुधा लज्जा एवं आत्मग्लानि के भागी बनते हैं। 

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