Monday, September 20, 2021

शादीशुदा पुरुष भी सह रहे प्रताड़ना, घरेलू हिंसा के मामलों में 40% शिकायतें पतियों ने की

 भारत डाॅट समाचार टाइम्स

  • सर्वे के मुताबिक ज्यादातर पुरुष सेल्फ रिस्पेक्ट के चलते अपनी पत्नी की शिकायत नहीं कर पाते।
  • हाल ही में हरियाणा के एक शख्स का वजन शादी के बाद कथित तौर पर पत्नी के अत्याचार की वजह से 21 किलो घट गया।
  • दुर्भाग्य से हमारे देश में पति के पास पत्नी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कानून नहीं है... यह टिप्पणी कुछ महीने पहले ही मद्रास हाई कोर्ट ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले को लेकर दी थी। सवाल उठा कि क्या पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार हो सकते हैं? हाल ही में इसका उदाहरण भी देखने को मिला। हरियाणा में हिसार के रहने वाले एक शख्स का वजन शादी के बाद कथित तौर पर पत्नी के अत्याचार की वजह से 21 किलो घट गया। इसी के आधार पर उसे हाईकोर्ट से तलाक की मंजूरी मिल गई। ऐसे मामले बढ़े हैं। बहुत से लोगों के लिए ये सोचना भी अविश्वसनीय है कि पुरुषों के साथ हिंसा होती है। वजह ये है कि पुरुषों को हमेशा से मजबूत और ताकतवर माना जाता रहा। लेकिन पारिवारिक विवादों को सुलझाने के लिए चलाए जा रहे तमाम परामर्श केंद्रों के आंकड़े इसका प्रमाण हैं कि पुरुष भी महिलाओं के उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं। घरेलू हिंसा से संबंधित शिकायतों में करीब 40 फीसद शिकायतें पुरुषों की हैं। इसमें ये बात भी सामने आई है कि महिलाओं को तलाक ही एकमात्र विकल्प सुझता है, वहीं पुरुषों का काउंसलिंग पर जोर होता है। यानी काउंसलिंग या किसी भी तरह से पुरुष रिश्ते को जारी रखना चाहते हैं।
  • क्या महिलाएं पुरुषों को करती है प्रताड़ित?
    साल 2018 में व्हेन वाइफ बीट देयर हसबैंड, नो वन वांट्स टु बिलीव इट नामक शीर्षक से प्रकाशित लेख में कैथी यंग ने कई रिसर्च का जिक्र किया। इससे ये पुष्टि हुई कि वायलेंट रिलेशनशिप में महिलाओं के एग्रेसिव होने की आशंका पुरुषों जितनी ही है।
    क्या कहता है डेटा
    वैसे तो, भारत में ऐसा कोई सरकारी आकंड़ा नहीं मिला, जिससे घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों का पता चल सके। लेकिन पुरुषों के अधिकारों के लिए कार्यरत कुछ संस्थाएं इस दिशा में काम कर रही हैं। साल 2020 में लॉकडाउन के दौरान सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन की ओर से टेलीफोनिक सर्वे किया गया। इस दौरान इंदौर की पौरुष संस्था और राष्ट्रीय पुरुष आयोग समन्वय समिति दिल्ली को भी पुरुष हेल्पलाइन पर कई शिकायतें मिली। इसमें पाया गया कि लॉकडाउन के दिनों में पत्नियों द्वारा अपने पतियों को प्रताड़ित करने के मामलों में 36 फीसदी की बढ़ोतरी हुई क्योंकि कई पुरुष काम छोड़कर घर पर बैठने गए, या फिर ऑफिस बंद होने से वर्क फ्रॉम होम करने लगे। ऐसे में वे पत्नियों के रवैये से डिप्रेशन में रहने लगे।

    सेल्फ-रिस्पेक्ट गंवाने के डर से शिकायत नहीं कर पाते
    कई संस्थाओं के सर्वे के मुताबिक ज्यादातर पुरुष सेल्फ रिस्पेक्ट के चलते अपनी पत्नी की शिकायत नहीं कर पाते। अगर कोई हिम्मत कर पुलिस को शिकायत करता भी है, तो अक्सर पुलिस ही उसे धमका देती है। वैवाहिक जीवन में पुरुष किस तरह प्रताड़ित होते है इसका उदाहरण प्रशासनिक व्यवस्था के बड़े ओहदों पर बैठे पुरुषों के मामले में भी देखने को मिला।
    केस- 1
    साल 2018 में कानपुर के पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) के पद पर तैनात रहे भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी सुरेंद्र कुमार दास की जहरीला पदार्थ खाने के कारण मौत हो गई। जांच में घरेलू कलह के कारण आत्महत्या की बात सामने आई।
    केस- 2
    साल 2017 में बिहार के आइएएस अधिकारी मुकेश कुमार ने पत्नी से विवाद के कारण गाजियाबाद रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन से कटकर अपनी जान दे दी थी। सुसाइड नोट में लिखा था कि वह अपनी पत्नी और अपने मां-बाप के बीच हो रहे झगड़े से बेहद परेशान थे।
    घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम पुरुष को नहीं देता सुरक्षा?
    नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट की मानें तो महिलाओं की तुलना में पुरुष ज्यादा आत्महत्या करते हैं। इसकी एक मुख्य वजह परिवार में चल रही कलह और रिश्तों से उपजा डिप्रेशन भी है। वहीं, साल 2019 में 'इंडियन जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन' की रिसर्च के अनुसार हरियाणा के ग्रामीण क्षेत्रों में 21-49 वर्ष की उम्र के एक हजार विवाहित पुरुषों में से 52.4 फीसद ने जेंडर आधारित हिंसा का अनुभव किया। इन आकड़ों को देख लगता है कि जब संविधान लिंग, जाति और धर्म के आधार पर किसी तरह का फर्क स्वीकार नहीं करता, तो क्यों घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम पुरुष को सुरक्षा नहीं देता? जबकि विकसित देशों में जेंडरलेस कानून वहां के पुरुषों को न केवल महिलाओं की तरह घरेलू हिंसा से प्रोटेक्शन देता है, बल्कि इस बात को भी स्वीकार करता है कि पुरुष भी प्रताड़ित होते हैं।

  • क्या तलाक से डरते हैं पुरुष?
    सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन और माई नेशन संस्था के ऑनलाइन शोध की मानें तो 98 प्रतिशत भारतीय पति तीन साल के रिलेशनशिप में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके हैं। दिल्ली हाइकोर्ट में वकील योगेंद्र ने बताया कि भारत में दहेज निरोधक कानून, घरेलू हिंसा अधिनियम, दुष्‍कर्म से संबंधित कानून सहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए और भी कई कानूनी प्रावधान अमल में लाए गए हैं। लेकिन पुरुषों के साथ हिंसा के लिए कोई कानून नहीं। एक दशक पहले जहां एक हजार में मुश्किल से एक मैरिड कपल्स तलाक के लिए कोर्ट पहुंचता था, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़ गया है। पुरुषों के कई मामले आते है जो अपने वैवाहिक जीवन से दुखी हैं और तलाक लेने की स्थिति से लगभग रोज गुजरते हैं। जब तलाक का कदम उठाते भी हैं तो उन्हें डर होता है कि कहीं उनका पक्ष सुने बिना ही क्रूर करार न दिया जाए।
    क्या महिलाओं के लिए बने कानूनों का हो रहा दुरुपयोग?
    साल 2018 में उत्तर प्रदेश में दो सांसदों ने ये मांग उठाई कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तर्ज पर राष्ट्रीय पुरुष आयोग भी बने। इसे लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था। इन्हीं में से एक सांसद का दावा था कि आज ऐसे कई पुरुष झेल में हैं, जो पत्नी प्रताड़ित है। लेकिन कानून के एकतरफा रुख और समाज में बदनामी के डर की वजह से वे घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा रहें। कई तो सुसाइड करने को मजबूर हैं। पुरुष आयोग की मांग का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। कई तरह से पुरुषों को प्रताड़ित किया जा रहा है। अमेरिका के कानून से प्रेरित होकर धारा 498-ए बनाई गई। लेकिन दहेज प्रताड़ना का ये कानून भी एकतरफा नजर आया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार साल 2012 में इस कानून के तहत दर्ज मामलों में 1,97,762 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इन मामलों में चार्जशीट यानी आरोप पत्र दाखिल करने की दर 93.6 फीसद है जबकि आरोपियों पर दोष साबित होने की दर महज 15 फीसद। वहीं, बलात्कार से संबंधित धारा 376 के तहत महिला का आरोप लगाने से ही आरोपी की गिरफ्तारी हो जाती है। अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दिल्ली में रेप के कुल 2,753 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 1,464 मामले झूठे थे।

  • एंटी-मेल सोच बदलने को संस्थाएं कर रही काम
    भारत में पहले पुरुषों के अधिकारों को लेकर कम ही आवाज उठती थी, लेकिन अब विभिन्न राज्यों में मेन्स राइट्स ऐक्टिविस्ट बैठक करने लगे हैं। यहां तक कि कई बार वे सड़कों पर उतरकर अपने हकों की बात भी करते हैं। मेन वेलफेयर ट्रस्ट के मेंबर सौरभ सिंह ने बताया कि हमारे देश में महिलाओं के मुकाबले शादीशुदा पुरुष ज्यादा सुसाइड कर रहे हैं। इससे उनके डिस्ट्रेस लेवल का पता चलता है। देश के अलग अलग राज्यों में काम कर रहीं हमारी संस्था को हर महीने 4 से 5 हजार पुरुषों की शिकायतें मिलती है। इसमें रिक्शा वाले से लेकर आईएएस ऑफिसर तक के लोग शामिल हैं। अधिकतर फाल्स रेप केस, मोलेस्टेशन, अननेचुरल सेक्स, झुठे मैरिज रेप के आरोपों से जुड़ी शिकायतों को लेकर फोन करते है।पुरुषों को जागरूक किया जाता है कि वे अपने हक की आवाज उठाएं। पुरुष हेल्पलाइन नंबर 8882-498-498 भी जारी किया गया है। इसके जरिये कोई भी पीड़ित पुरुष कभी भी फोन कर मदद मांग सकता है।

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