![]() |
रचनाकार - सीमा मोटवानी फैज़ाबाद |
राधा तुम कभी रुक्मणि न बन पाओगी,,
प्रेयसी तो हो जाओगी पर पत्नी न कहलाओगी...!!
प्रेम नाम तुमने ख़ुद साथ ही छल किया,,
कृष्ण संग चल, जग भय तज दिया,,
कृष्ण बांसुरी हो जाओगी,, पर संग न रह पाओगी,,
राधा तुम रुक्मिणी न बन पाओगी..!!
राधे-कृष्ण से जग सदा बुलाता रहे तो क्या,,!!
प्रेम प्रतिमाएं तुम्हारी लगाता रहे तो क्या,,!!
कृष्ण सिंदूर से कभी अपनी मांग न सज पाओगी,,!!
राधा तुम कभी रुक्मिणी न बन पाओगी,,!!
पुरूष प्रेम तो अस्थिर है युगों से,,
तुम्हारे बन्धन मर्यादित है तभी से,,
कृष्ण चाह मीरा भांति तुम विष भी न पी पाओगी..!!
राधा तुम अमर तो हो जाओगी,,
पर रुक्मिणी न बन पाओगी,,तुम रुक्मिणी न बन पाओगी.....!!
No comments:
Post a Comment