Sunday, September 12, 2021

राधा तुम कभी रुक्मणि न बन पाओगी - सीमा मोटवानी

रचनाकार - सीमा मोटवानी फैज़ाबाद

राधा तुम कभी रुक्मणि न बन पाओगी,,

प्रेयसी तो हो जाओगी पर पत्नी न कहलाओगी...!!


प्रेम नाम तुमने ख़ुद साथ ही छल किया,,

कृष्ण संग चल, जग भय तज दिया,,

कृष्ण बांसुरी हो जाओगी,, पर संग न रह पाओगी,,

राधा तुम रुक्मिणी न बन पाओगी..!!


राधे-कृष्ण से जग सदा बुलाता रहे तो क्या,,!!

प्रेम प्रतिमाएं तुम्हारी लगाता रहे तो क्या,,!!

कृष्ण सिंदूर से कभी अपनी मांग न सज पाओगी,,!!

राधा तुम कभी रुक्मिणी न बन पाओगी,,!!


पुरूष प्रेम तो अस्थिर है युगों से,,

तुम्हारे बन्धन मर्यादित है तभी से,,

कृष्ण चाह मीरा भांति तुम विष भी न पी पाओगी..!!

राधा तुम अमर तो हो जाओगी,,

पर रुक्मिणी न बन पाओगी,,तुम रुक्मिणी न बन पाओगी.....!!

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