बड़ा मंगल पर विशेष
आचार्य डा0 प्रदीप द्विवेदी
‘‘मानव सेवा रत्न से सम्मानित’’
(वरिष्ठ सम्पादक- इडेविन टाइम्स)
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उत्तर प्रदेश की राजधानी है लखनऊ। कहते हैं कि ये नगरी श्रीराम के भाई लक्ष्मण द्वारा बसाई गयी है। यहां आपको संस्कृति के विविध आयाम देखने को मिलेगे। यहाँ पर परम्परा के रूप में ज्येष्ठ मास के प्रथम मगलवार को बड़ा मंगल के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस परम्परा की शुरूआत लगभग 400 वर्ष पूर्व मुगल शासनक ने की थी। ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले जितने भी मंगल आते हैं वे सभी उतने ही उल्लास से मनाये जाते है। यह पर्व केवल सनातन धर्मावलम्बियों का ही नहीं है अपुति सभी धर्मों के लिये महत्त्वर्पूण होता है और समस्त मतावलम्बी पूर्ण उत्साह से इस पावन परम्परा का निर्वाह करते हैं।
इसे मनाने के पीछे दो ऐतिहासिक कारण है। पहला कारण यह है कि नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबिया ने उसका कई जगह इलाज करवाया किन्तु वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की दुआ मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आयी। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा बेगमरूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गयीं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। तबरूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का र्जीणोद्धार करवाया। र्जीणोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांद तारा का चिन्ह आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है। मंदिर के र्जीणोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड धनिया, भुने हुए गेहूं में गुड मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद बंटवाया और प्याऊ लगवाये। तब से इस बडे मंगल की परम्परा की नींव पडी।
दूसरा एतिहासिक कारण यह है कि अवध के तृतीय नवाब शुजाउद्दौला की दूसरी बेगम जनाब ए आलिया को कई वर्ष तक सन्तान नहीं हुई। कई हकीमों वैद्यों और चिकित्सकों की चिकित्सा का जब कोई प्रभाव होता न दिखा तो बेगम पीर, मौलवियों और मजारों पर जाने लगीं। इससे भी उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ, उनकी बेचैनी बढ़ती ही गई। नवाब शुजाउद्दौला भी बहुत चिन्तित थे। एक बार नवाब साहब ने अपने दरबार में र्कायरत एक ब्राह्मण सचिव से अपना दुख व्यक्त किया। दुख को सुनकर ब्राह्मण ने किसी योग्य ज्योतिषी से मिलने की सलाह दी और कहा कि इश्वर चाहेंगे तो अवश्य कोई मार्ग मिल जायेगा। नवाब साहब ने उस ब्राह्मण की बात मानी और एक पाण्डेय कुल के श्रेष्ठ ज्योतिर्विद का पता लगवा कर उनसे संर्पक किया। पाण्डेय जी ने बहुत परिश्रम कर के काल गणना के द्वारा नवाब और उनकी बेगम की जन्मपत्रिका र्निमित की और फिर उसका अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने एक अनुष्ठान्न करने के लिए नवाब को समझाया और संकल्प कराया तथा यह भी कहा कि मै जब तक अनुष्ठान करूं तब तक आप रोजाना बेगम साहिबा के साथ हनुमान मन्दिर में जाकर र्दशन और पूजन प्रतिदिन करिये। अनुष्ठान काल में नवाब साहब प्रतिदिन मन्दिर जाते रहे। एक ही माह पश्चात उनकी बेगम र्गभवती हुईं। नवाब साहब की प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा। ज्योतिर्विद पाण्डेय जी को बुला कर उन्होंने उन्हें बहुत सम्मानित किया और खूब दान-दक्षिणा प्रदान की।
नवाब साहब की बेगम को एक दिन स्वप्न में एक बन्दर के र्दशन हुए, जिसने मनुष्य की वाणी में उनको बताया कि यह नगर भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण द्वारा बसाया गया है इसकी रक्षा राम के सेवक हनुमान जी करते हैं। तुम्हारे भाग्य में सन्तान सुख नहीं था फिर भी हनुमान जी की कृपा से तुम्हे सन्तान प्राप्त होने जा रही है। तुम हनुमान जी के एक मन्दिर का निर्माण करवाओ। स्वप्न में उस बन्दर ने यह भी र्निदेश दिया कि कल सुबह तुम और नवाब दोनों हाथी पर बैठ कर नगर के भ्रमण के लिए निकलो। जहां पर हाथी रुक जाये उसी स्थान पर विशाल और भव्य मन्दिर का र्निमाण करवाओ। प्रातः को बेगम ने नवाब साहब को बुलवाकर स्वप्न की बात बताई और नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। दोनों दम्पत्ति हाथी पर सवार होकर चले। चलते-चलते हाथी एक स्थान पर रूक गया। जिस स्थान पर हाथी रूका आज वो र्वतमान में अलीगंज स्थल है। हांथी पर बैठे महावत ने बहुत प्रयत्न किया किन्तु हाथी वहां से आगे नहीं बड़ा। नवाब साहब ने उसी स्थल को अभीष्ट मान कर हनुमान जी का मन्दिर बनवाने की आज्ञा दे दी। वह मन्दिर आज भी अपने उसी रूप में लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में देखा जा सकता है। उचित समय आने पर ज्येष्ठ मास के प्रथम मंगल को नवाब साहब को एक सन्तान कि प्राप्ति हुई। उसी दिन से लखनऊ में बड़ा मंगल मनाने की परम्परा स्थापित हुई। एैसी मान्यता है कि जो ज्येष्ठ मास के किसी भी मंगल को हनुमान जी के किसी भी मन्दिर में र्दशन करेगा उसकी इच्छा अवश्य र्पूण होगी।
सारे लखनऊ में इस दिन जगह-जगह भंडारे होते हैं, लोग प्याऊ लगवाते हैं और घरो में हनुमान जी का गुणगान किया जाता है। इसमें सभी धर्मों के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और भेदभाव को भुलाकर भंडारों में प्रसाद ग्रहण करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि मेष लग्न में हनुमान जी का जन्म हुआ था और इस दौरान उनकी पूजा-अर्चना करने से विशेष लाभ होता है।
आज के युग में हनुमानजी की जप आराधना करने के लिए अनेक सिद्ध मंत्र और चालीसा का पाठ बताया गया है। हनुमान जी की उपासना से बुद्धि, यश, शौर्य, साहस और आरोग्यता में वृद्धि होती है। राम उनके आर्दश देवता हैं। हनुमानजी जहां राम के अनन्य भक्त हैं, वहां रामभक्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपके जीवन में कोई संकट न आए तो नीचे लिखे मंत्र का जप अवश्य कर के देखें। प्रति मंगलवार को भी इस मंत्र का जप कर सकते हैं।
मंत्र- ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा
जप की विधि- सर्वप्रथम स्नान आदि करने के बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें। आपको बता दें कि पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे तो विशेष फल मिलता है। जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करेंगे तो हितकर रहेगा।
राजधानी के हनुमान सेतु मंदिर, अलीगंज स्थित नया हनुमान मंदिर, पक्का पुल स्थित अहिमर्दन पातालपुरी, अमीनाबाद स्थित महावीर मंदिर और हजरतगंज स्थित दक्षिणमुखी सहित सभी मंदिरों में सुबह से ही पूजा अर्चना के लिए भक्तों की भीड़ जमा हाने लगती है। मंदिरों में चारों तरफ हनुमान चालीसा, सुंदरकांड, बजरंगबाण के पाठ सहित बजरंग बली की आरती के स्वर गूंजते हैं। हनुमान सेतु मंदिर के पुजारी ने बताया कि ज्येष्ठ माह के चारों बड़े मंगल पर बजरंगबली की अपने भक्तों पर खास कृपा होती है। सच्चे दिल से दरबार में आकर शीश झुकाने से अंजनि पुत्र अपने भक्तों को सारे कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
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