Tuesday, June 16, 2020

क्या मृत आत्माओं को बुलाया जा सकता है ?

आचार्य डा0 प्रदीप द्विवेदी
’’मानव सेवा रत्न से सम्मानित’’
(पत्रकार एवं आध्यात्मिक लेखक)
मो0- 08115383332

हिन्दू धर्म के ग्रन्थों में जहां देवताओं और स्वर्ग की विस्तार से चर्चा की गयी है। इन्हीं ग्रन्थां में राक्षस, दैत्य, भूत-प्रेत आदि का भी उल्लेख मिलता है। यहां तक कि रणभूमि में मरे हुये सैनिकों का वर्णन करते हुये योगिनी, बेताल, प्रेत, पिशाच आदि का वर्णन प्राप्त होता है। इसका कारण यह है कि अधिकांश व्यक्ति मृत अत्माओं में विश्वास करते हैं। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त ईसाई और बौद्ध साहित्य में भी प्रेत आदि योनियों की काफी चर्चा मिलती है। अंग्रेजी साहित्य में शैतान का वर्णन है। मिल्टन ने अपनी कृति पैराडाइज लौस्ट में शैतान और नरक की विशद चर्चा की है। सभी धर्म और सम्प्रदाय अदृष्ट मनुष्येतर योनि को मानते आये हैं। आंखों से दिखाई देने वाले इस भौतिक जगत के अतिरिक्त एक सूक्ष्म जगत भी है। इसमें स्वर्ग और नरक का अस्तित्व है। मनुष्य मृत्यु के बाद ऐसे स्थान पर जाता है, जहां उसके अच्छे या बुरे कार्यों के अनुसार नयी योनि का निर्धारण होता है। वह अपने कुकर्मों की सजा पाता है और पुण्य कार्यों के लिये पुरस्कृत होता है। ईश्वर के द्वारा उत्तम योनि में नया जन्म पाता है। परलोक का विषय परम्परागत है।

परलोक का ज्ञान बुद्धि से परे
पाश्चात्य देशों में भी परलोक के सम्बन्ध में काफी रूचि ली जाती रही है। प्रेतों और पिशाचों का सम्बन्ध श्रद्धा और विश्वास से ही है। विज्ञान की कसौटी पर न देवी-देवता दिखाये जा सकते हैं और न दैत्य, राक्षस, भूत और प्रेत ही। यूरोप और इंग्लैण्ड में भी प्राचीन काल के लोग परलोक में पूरा विश्वास करते थे। शैक्सपीयर ने अपने हैमलेट नामक नाटक में अंग्रेज लोगों का 16वीं शताब्दी में भूत-प्रेतों में विश्वास व्यक्त किया है। जो लोग विज्ञान की दृष्टि से ही हर बात को सिद्ध करने की बात करते हैं उन्हें सम्बोधित करते हुये उन्होने हैमलेट के मुंह से यह कहलवाया है- ;ज्ीमतम ंतम उवतम जीपदहे पद ीमंअमद ंदक मंतजीए भ्वतंजपवए जींद पे कतमंउज वि पद लवनत चीपसवेवचीलण्द्ध ‘‘होरेशियो, इस सृष्टि में असंख्य बातें ऐसी हैं, जिनको अभी आपके दार्शनिकों ने कल्पना तक नहीं की है।’’ (यह वाक्य हैमलेट ने अपने पिता के प्रेत देखने के शरीर के प्रसंग में कहा है)

परलोक का ज्ञान बुद्धि से परे है। जो आस्तिक श्रद्धापूर्वक भगवान में विश्वास करते हैं, वे ही परलोक और प्रेत-शरीर को मान सकते हैं। पाश्चात्य विज्ञान सतत विकासमान है और वहां परलोक के सम्बन्ध में भी नयी खोजें होती रहती हैं, पुरानी रूढ़ियों का खण्डन और नये तथ्यों का मण्डन होता रहता है। यूरोप में परलोक विषय के तथ्यों की जानकारी की जांच सम्वत 1905 से प्रारम्भ हुई थी। जिन लोगों के सिर पर प्रेत आते हैं, उन्हें बैठाकर अथवा किसी कोमल या दुर्बल मनवाले को सुलाकर या अचेत करके, कई प्रकार के प्रश्न करके, उनके मुख से निकले हुये उत्तरों की सहायता से परलोक सम्बन्धी नयी जानकारी मिलने लगी। लगभग 60 वर्ष पहले इंग्लैण्ड मे होम नामक एक प्रसिद्ध जिन्नी हुआ। जिन्न, भूत, प्रेत, पिशाच आदि सबमें उसकी पहुंच बतायी जाती है। उसी समय लंदन में प्रो0 विलियम क्रुक्स नामक प्रसिद्ध रसायनशास्त्री थे, जिन्होने थेलियम नामक तत्व का पता लगाया था। प्रो0 क्रुक्स को होम की परलोक सम्बन्धी जानकारी में दिलचस्पी हुई। उन्होने एक तुलादण्ड बनाया। इसे उठाने में ही भार बढ़ता जाता था। जैसे-जैसे दण्ड उठता, एक सुई घूमकर घड़ी के चेहरे की तरफ अंकित एक चक्र पर उसे उठाये हुये भार का परिणाम सूचित करती थी। इस प्रकार उस यन्त्र में 800 मन से ज्यादा उठाने की क्षमता थी। यन्त्र की ठीक प्रकार जांच करके इसे उन्होने एक खाली कमरे में लगाया। होम की कुर्सी द्वार के पास अपनी कुर्सी के साथ रखवायी और उनकी तलाशी लेकर होम को आज्ञा दी-‘अब आप अपने प्रेत से कहिये कि अमुक चिन्हवाले तुलादण्ड को जितना ऊपर उठा सके, उठाये।’

यह सुनकर होम ने प्रेत का आवाहन किया और तुलादण्ड धीरे-धीरे उठने लगा। प्रो0 क्रुक्स के आश्चर्य की सीमा न रही। वह तुलादण्ड इतना उठा, जितना होम जैसे 10-20 बलवान भी मिलकर न उठा पाते। इससे प्रमाणित हो गया कि वास्तव में प्रेत नाम की कोई अदृश्य शक्ति अवश्य है। इस संकेत से प्रो0 क्रुक्स ने परलोक सम्बन्धी ज्ञान का वैज्ञानिक अध्ययन किया और अपनी जांच को प्रकाशित कराया। जिससे और वैज्ञानिक इस विषय का अनुसंधान करें और परलोकविद्या को विज्ञानों में स्थान मिल सके। पहले तो प्रो0 क्रुक्स की हंसी उड़ाई गयी, पर फिर और भी विचारक इस विषय पर गम्भीरता से विचार करने लगे। कई कई विद्वान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के नियमों के अनुसार इस विषय की पड़ताल करने के लिये एक परिषद बनायी। यह परिषद संवत् 1939 में बनी थी और इसका नाम परान्वेषण परिषद ;ैवबपमजल वित च्ेलबीपबंस त्मेमंतबीद्ध रखा गया। इस परिषद की देखभाल में मेस्मरिज्म, अलग-अलग विधियों से प्रेतों से सम्बन्ध के प्रयोग और हिप्नोटिज्म आदि के अनेक प्रयोग किये जाने लगे। भूत-प्रेतों का ढोंग कर जनता को छलनेवाले लोगों का पर्दाफाश भी किया गया। आगे चलकर उन्होने इतना काम किया कि आप जाश्चात्य जगत में परलोक-अन्वेषण काफी मात्रा में हो चुका है। इस विषय पर साहित्य भी उपलब्ध है। 

खोज की दृष्टि से प्रो0 विलियम क्रुक्स ने एक देहाती लड़की का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया, जो कुछ दिन से एक विचित्र मूर्च्छा-रोग से पीड़ित थी। उसे प्रेतबाधा नामक रोग बताया गया था। इस लड़की का नाम कुमारी कुक था। उन्होने एक माह तक उस कन्या को अपनी प्रयोगशाला में रखा। इस लड़की के स्थूल शरीर पर बीबी केटी किंग नामक किसी महिला का प्रेतात्मा आया करता था। क्रुक्स ने प्रेतात्मा का पूरा परिचय प्राप्त किया। उस प्रेतात्मा को क्रुक्स का व्यवहार इतना पसंद आया कि वह उस लड़की के शरीर को मूर्छित कर उनसे गप्पें मारा करता था। प्रेतवाली लड़की अजीब तरह से व्यवहार करने लगती। उनके साथ चाय पीती। उनके घर से बच्चों को उठा लाती और विचित्र करतब दिखाती। प्रो0 क्रुक्स की पुस्तक परलोक विद्या सम्बन्धी अनुसन्धान में ऐसे 29 प्रयोग दिये हैं। उन प्रेतात्मा के मरने के पहले की कहानी भी इस पुस्तक में वर्णित है। यह पुस्तक यूरोप की यह प्रारम्भिक कृति मानी जाती है। 

इस तरह यह स्पष्ट है कि पाश्चात्य देशों के लोग भी परलोक विद्या में रूचि रखते हैं। भारत में तो परलोक विषय पर बहुत प्राचीन विश्वास रहा है। वैसे तो भूत-प्रेतों, चुड़ैल-डाकिनी के नाम पर यहां खूब पाखंण्ड और छल भी होता रहा है। जिससे भोले-भाले लोग ठगे जाते रहते हैं। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से अब परलोक विद्या मनोविज्ञान की एक शाखा मान ली गयी है। ये लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इन्द्रियातीत संसार बहुत विस्तृत है। जितना कुछ हमें 5 इन्द्रियों से दिखता है, उसकी अपेक्षा समस्त वस्तु की सत्ता अनन्त, अपरिमित और असीम है। उनको जानने के लिये हमें भीतर इन्द्रियों और सूक्ष्म शरीरों की शिक्षा और विकास की आवश्यकता है। हमारे यहां योगसाधन द्वारा परलोक विद्या की प्राप्ति कोई नयी बात नहीं है। 

हिन्दू धर्म की मान्यता
हिन्दू धर्म की यह मान्यता है कि ब्रह्माण्ड में मुख्य 14 लोक हैं। ऊपर के लोक में सत्आत्मा रहते हैं। जिसे स्वर्ग कहते हैं। नीचे एक नरक लोक है, जिसमें दैत्य और भूत-प्रेत आदि दुष्ट आत्मा नरक का दुख भोगते रहते हैं। मध्य में मनुष्यलोक है। जिसमें मनुष्य सत्कर्म द्वारा अगले जन्म में स्वर्ग या नरक में जाने का अधिकारी होता है। आत्मा को परलोक में रहकर अपने पाप-पुण्यों का फल भोगकर अवशिष्ट कर्मों से मनुष्य लोक में जाना पड़ता है। भारतीय विचारकों के अनुसार सूर्य, चन्द्र या तारों में भी एक-एक स्रष्टि है। ये अलग-अलग लोक हैं। सभी परलोक हैं। सभी में जीव के निवास का विधान है। अच्छे या बुरे कर्मों के अनुसार जीव उसमें पहुंचता है। सुख-दुख का अधिकारी बनता है। परलोक में रहने वाले आत्माओं की शक्ति साधारण मनुष्य की अपेक्षा अधिक रहती है। जब तक जीवात्मा इस पृथ्वीलोक में स्थूल शरीर में रहता है, तब तक उसकी शक्ति कम रहती है, किन्तु ज बवह स्थूलशरीर को छोड़कर सूक्ष्म होकर पितृलोक में जाता है तो उसकी शक्ति बढ़ जाती है। पितरलोक में निवास करने वाले आत्मा बहुत शक्तिशाली और अद्भुत शक्तिसम्पन्न सर्वज्ञ होते हैं। सबकी जानकारी रखते हैं। कई गुप्त बातें प्रकट कर देते हैं। असाध्य रोगों का, हत्याकाण्डों के गुप्त रहस्य, षड्यन्त्र और भविष्य में होनेवाली अनेक अद्भुत बातें उनसे प्रकट हो जाती हैं। 

प्रेतात्मा आपके मन्तव्य को पहचानते हैं। यदि उनसे मजाक किया जाये, तो वे नाराज हो जाते हैं और बड़ी समस्य पैदा करते हैं। हवन, कीर्तन, धूप-दीप आदि जलते रहने से वे दूर रहते हैं। उन्हें तभी बुलाया जाना चाहिये जब कोई निःस्वार्थ काम हो और उसके सम्बन्ध में जानकारी बहुत आवश्यक हो जाये। जो जीवन में अतृप्त रहते हैं वे ही प्रेतात्मा यहां-वहां भटकते रहते हैं। उनकी ममता और आसक्ति पृथ्वी पर रहने वाले अपने पुत्र-पुत्री तथा सम्बन्धियों में जकड़ी रहती है और प्रायः वे उन्हीं के आस-पास चक्कर लगाते रहते हैं। जिनका जीवन शान्त और संतोषमय रहा हो, मरने से पूर्व जो सब प्रकर के माया, ममता और मोह से मुक्त हो जाते हैं, जिनकी मनोवृत्ति परोपकर और ईश्वर चिन्तन की ओर विशेषरूप से रहती है, वे मोक्ष प्राप्त करते हैं। ऋग्वेद कहता है ‘‘उदुत्तमं मुमुग्धि नो वि पाशं मध्यमं चृत। अवाधमानि जीवसे।।’’ (ऋग्वेद 1/25/21) अर्थात पुत्रैषणा, वित्तैषणा तथा लोकैषणा की सांसारिक भावना से हम उन्मुक्त हों। क्योंकि इनसे हमारा आत्मा पतित होकर दुख पाता है। सामवेद कहता है-
अच्छा व इन्द्रं मतयः स्वर्युवः सध्रीचीर्विश्वा उशीतीरनूषत।
परि ष्वजन्त जनयो यथा पतिं मर्यं न शुन्ध्युं मघवानमूतये।। (सामवेद 375)
अर्थात ‘मनुष्य जितना लौकिक कामनाओं धन आदि के लिये तथा स्त्री आदि के प्रति प्रेम होता है, उतना ही यदि वह ईश्वर से प्रेम करे, तो निस्संदेह संसार से रक्षा और परमानन्द की प्राप्ति हो सकती है।’

मृत आत्माआें का आवाहन
मरणोपरान्त जीवन पर विश्व के दार्शनिकों ने बहुत विचार-विमर्श किया है। पर अन्तिम परिणाम कुछ नहीं निकला है। आत्मा, पुनर्जन्म, भूत-प्रेत, परलोक आदि मनुष्य के लिये सदैव से रहस्य के विषय रहे हैं। भारतीय ऋषि-मुनियों का यह अनुभूत सिद्धान्त है कि आत्मा नित्य है और जीवात्मा को पुनर्जन्म तथा परलोक की कर्मानुसार प्राप्ति होती है। पाश्चात्य जगत में इसकी खोज चल रही है। नार्मन विन्सेट पील नामक विद्वान ने जीवनभर जीवित बने रहिये ;ैजंल ंसपअम ंसस लवनत सपमिद्ध नामक पुस्तक की रचना की। इसमें उन्होने मृत्यु के उपरान्त जीवन होने पर प्रकाश डाला है। इस पुस्तक के अनुसार प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडीसन मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे। वे मानते थे कि आत्मा का पृथक अस्तित्व है, जो मृत्यु के उपरान्त शरीर का छोड़ जाता है। मृत्यु के समय एडीसन ने कहा था कि ‘अहा, आगे कैसा सुन्दर लग रहा है।’ पील महाशय के अनुसार कई मरते हुये व्यक्तियों ने उन्हें बताया कि उन्हें आश्चर्यजनक ज्योति दिखाई पड़ रही है। विचित्र संगीत सुनाई दे रहा है। कइयों ने बताया था कि उन्हें ऐसे चेहरे दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें वे पहचानते हैं। इन मरनेवालों की आंखों से प्रायः संदिग्ध आश्चर्य टपकता था। परलोक विद्या में रूचि रखने वाले जिज्ञासुओं के सामने मुख्य समस्या यह है कि मृत-आत्माआें से शीघ्र सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है। कुछ प्रयोग ऐसे हैं, जिनके द्वारा मृत-आत्माओं से शीघ्र सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है। इन प्रयोगों के पीछे श्रद्धा, साहस, उत्कण्ठा, विश्वास आदि गुण प्रयोगकर्ता में होने आवश्यक हैं। मृत-आत्माओं को बुलाने की कई विधियां है। किन्तु किन्हीं कारणवश उन विधियों का उल्लेख यहां नहीं किया जा रहा है। 

आत्माओं से साक्षात्कार सम्बन्धी प्रयोग भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी हो रहे हैं। भूत-प्रेतों के अस्तित्व में अंग्रेज भी विश्वास करते थे। द्वितीय महायुद्ध के समय एक ब्रिटिश वैमानिक भूत कतिपय जन्य वैमानिकों के साथ जर्मनी पर बम-वर्षा करता रहता था। इसकी चर्चा ब्रिटिश वायुसेना के एयर मार्शल लार्ड डाबडिंग ने भी अपने एक लेख में की थी। परलोकगत आत्माओं के चित्र भी खींचे जा सकते हैं। प्रत्यक्ष दर्शन, उनसे वार्तालाप करना, उनका स्पर्श करना आदि भी सम्भव है। इंग्लैड और अमेरिका की कई आध्यात्मिक संस्थायें परलोक-विद्या में रूचि ले रही हैं। प्रेतात्माओं का अस्तित्व तर्क से कम, पर श्रद्धा और विश्वास करने से सहज सिद्ध किया जा सकता है। सर आर्थर कानन डायल, जी.एम.स्मिथ,सर आलिवर लाज एवं पील आदि परलोक-विद्या में रूचि रखने वाले विद्वान हुये हैं। प्रयोगों को र्धयपूर्वक करना चाहिये। आत्मा जड़-जगत से परे है। 

पाठकां और जनहित की दृष्टि से यह बताना चाहेंगे कि इस विद्या में कई संकट आते हैं। यह स्पष्ट है कि ये विद्यायें ईश्वर की तरफ जाने में बाधक बन जाती हैं। मनुष्य सिद्धियों के जाल में फंसकर रह जाता है। इसलिये बड़ी सतर्कता एवं संरक्षण जरूरी है। प्रमुख बात यह कि इस विद्या में मृतात्माओं आदि के आवाहन से पूर्व अपने चक्र के संरक्षण की व्यवस्था कर लेनी चाहिये। जिन पर किन्हीं शक्तिशाली देवता की कृपा विशेष है, वे उनके संरक्षण में अपना चक्र आसानी से चला लेते हैं। अन्यथा किसी उच्चलोक के अपने सम्बन्धी आत्मा से भी सहायता मिल जाती है। परन्तु उनकी शक्ति सीमित होती है। सातवें लोक के आत्मा नीचे के 6 लोकों में जाने में स्वतंत्र हैं, पर वे ऊपर (दिव्य धाम) नहीं जा सकते। इसी प्रकार अन्य लोकों के आत्माओं के लिये भी नियम लागू हैं। यदि आपके चक्र का संरक्षण कोई नीचे के लोक के आत्मा के हाथ में हैं तो वह ऊपर के आत्मा पर शासन नहीं कर सकता। इसी से चक्र पर अधिक बलवान आत्मा आकर, झूठ बोलकर आपकों धोखा दे सकते हैं और हानि पहुंचा सकते हैं। मै एक एैसे कर्मकाण्डी ब्राह्मण महाशय को जानता हूं जिनके घर में इसी प्रकार आकर 40 आत्माओं ने डेरा डाल दिया और उनके घर को तहस-नहस कर डाला। 

चक्रकर्ता यदि भक्तिभाव एवं शुद्धविचार का है, तो ऐसी जगह ब्रह्मराक्षस के आने की आशंका बनी रहती है। क्योंकि पवित्र चक्र पर उसको चैन मिलता है। ब्रह्मराक्ष वे मृत ब्राह्मण होते हैं जो किसी सिद्धि में असफल होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इन पर वे ही चक्रकर्ता शासन कर सकते हैं, जो इनकी असफल् सिद्धि से अधिक बल रखते हों। कहने का तात्पर्य कि शक्तिशाली सिद्ध हों या ईश्वर के कृपा पात्र हों। ये ब्रह्मराक्षस साधारण चक्र संरक्षकों से नहीं रूकते तथा बिना बुलाये आ जाते हैं। आकर मनमानी कर सकते हैं। इनमें अच्छे स्वभाव के भी होते हैं, बुरे के भी। बुरे स्वभाव वालों से बड़ी विपत्ती में फंस सकते हैं। इनके बचना हर किसी की सामर्थ्य से बाहर होता है। इसलिये निवेदन कि यह विद्या जितनी आसान है, उतनी ही भयावह भी है। इसलिये सोच-समझकर इस रास्ते पर पग धरें।

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