एक रामकथा और कई रामायण
आचार्य डा0 प्रदीप द्विवेदी
(सम्पादक- इडेविन टाइम्स)
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रामकथा के रूप में जिस ग्रन्थ का सर्वप्रथम नाम लिया जाता है वह है महर्षि वाल्मिकि की रचना ‘‘वाल्मीकीय रामायण’’। वाल्मीकीय रामायण को स्मृत ग्रन्थ माना गया है। वर्णन प्राप्त होता है कि इस ग्रन्थ की रचना माता सरस्वती की कृपा से हुई थी। साथ ही इस ग्रन्थ को ऋतम्भरा प्रज्ञा की देन बताया जाता है। यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है।
अब नाम आता है रामचरितमानस का। इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास द्वारा संवत् 1633 विक्रमी में सम्पन्न हुई थी। इसकी भाषा अवधी है। इस काव्य की रचना में 2 वर्ष 7 माह और 26 दिन लगे थे। इस ग्रन्थ में बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में 7 काण्ड हैं। इन सातों काण्डों में ही राम का सम्पूर्ण चरित्र समाहित किया गया है।
महर्षि व्यास ने आध्यात्म रामायण की रचना की। ब्रह्माण्डपुराण के उत्तरखण्ड में यह कथा उपलब्ध है। इसकी रचना भी संस्कृत भाषा में हुई है। इस ग्रन्थ में भगवान श्रीराम को आध्यात्मिक तत्व माना गया है। महर्षि वाल्मीकी की एक रचना और मानी जाती है वह है आनन्दरामायण। इस रामायण को भी सारकाण्ड, जन्मकाण्ड, मनोहरकाण्ड, राज्यकाण्ड आदि काण्डों में बांटा गया है। इसकी भाषा संस्कृत है। इस रामायण में राजनैतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक महत्व के साथ-साथ श्रीराम के मर्यादापुरूषत्व को आधार बनाया गया है।
अद्भुतरामायण की रचना भी संस्कृत में हुई है। इस रामायण में 27 सर्ग हैं और लगभग 14 हजार श्लोक हैं। इसमें सीता जी के महात्म्य को विशेषरूप से दर्शाया गया है। इस कथा के अनुसार सहस्त्रमुख नाम का भी रावण था जो दशमुख रावण का अग्रज था। सीता ने महाकाली का रूप धारण करके सहस्त्रमुख रावण का वध किया था। योगवशिष्ठरामायण की रचना भी महर्षि वाल्मीकी की कृति मानी जाती है। इसके दूसरे नाम योगवसिष्ठ महारामायण, आर्षरामायण, वासिष्ठरामायण, ज्ञानवासिष्ठरामायण भी हैं। इस ग्रन्थ में वैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्पत्ति प्रकरण, उपशम प्रकरण तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वाद्ध एवं उत्तरार्द्ध) के रूप में श्रीराम के चरित्र को 6 प्रकरणों में बांटा गया है। साथ ही इसमें श्रीराम के मानवीय चरित्र को विस्तृत रूप से दर्शाया गया है।
संस्कृत भाषा में टीका के रूप में रचित प्रेमरामायण भी उपलब्ध है। यह श्रीरामचरितमानस की प्राचीन संस्कृत टीका मानी जाती है। इसकी रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के पट्टशिष्य रामू द्विवेदी ने की थी। कृत्तिवासारामाण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म से लगभग 100 वर्ष पूर्व हुई थी। इसकी भाषा बंगला है। कृत्तिवासा द्वारा रचित इस रामायण में भी बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, उत्तरकाण्ड आदि हैं। पवार छन्दों में पांचालीगन के रूप में रचित इस ग्रन्थ में श्रीराम के उदार चरित्रों का वर्णन किया गया है।
द्रविण भाषा (तेलुगु) में भी एक रामायण की रचना हुई जिसका नाम है रंगनाथरामायण। इसकी रचना श्रीगोनबुद्धराज द्वारा देशज छन्दों में सन 1380 के आस-पास की गयी थी। इस रामायण में युद्धकाण्ड के माध्यम से श्रीराम को महाप्रतापी बताया गया है। रावण के कुकृत्यों की निन्दा के साथ ही उसके गुणों का भी इसमें वर्णित की गयी है। उडिया भाषा में आदि कवि श्रीशारलादास द्वारा बिलंकरामायण की रचना हुई। यह रामायण पूर्वखण्ड तथा उत्तरखण्ड के रूप में दो खण्डों में है। शिव-पार्वती के संवाद के रूप में रचित यह रामायण भगवती महिषासुरमर्दिनी की वन्दना से प्रारम्भ हुई है। इसी उडिया भाषा में जगमोहनरामायण की रचना भी हुई, जिसके रचनाकार सन्त बलरामदासजी हैं। सारे उत्कल प्रदेश में इसकी प्रसिद्धि दाण्डिरामायण के नाम से है। उडिया भाषा में एक अन्य रामायण विचित्ररामायण के नाम से भी प्राप्त होती है। इसके रचनाकार विश्वान खुंटिया हैं।
महाकवि कम्ब ने कम्बरामायण की रचना तमिल भाषा में की। इसमें 6 काण्ड हैं। प्रत्येक काण्ड में कथाओं को पटलों में विभक्त किया गया है। श्रीराजगोपालाचारी जी ने इसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद भी किया है। महाकवि बत्तलेश्वर ने कन्नड़भाषा में तोरवेरामायण की रचना की। यह रामायण शिव-पार्वती के संवाद के रूप में वर्णित है।
दिवाकर प्रकाश भट्ट ने कश्मीरी भाषा में कश्मीरीरामायण की रचना की। इस रामायण को रामावतारचरित के नाम से भी जाना जाता है। इसे प्रकाशरामायण भी कहते हैं। इसका हिन्दी रूपान्तरण काशुररामायण के नाम से प्राप्त होता है। इसमें भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य का वर्णन हुआ है। कवि गिरधर द्वारा गुजराती भाषा में रचित गिरिधररामाण प्रसिद्ध है। गुजराती भाषा में इसका वही स्थान है जो हिन्दी में गोस्वामी तुलसीदास की रामचरितमानस का। मध्यकालीन गुजराती कवि उद्धव द्वारा रचित उद्धवरामायण भी प्राप्त होती है। गुजरात प्रान्त के आदिवासियों में डांगीरामायण तथा वहां के भील जाति में भलोडीरामायण का प्रचलन है। इसके अलावा जैन कवि श्रीजिनराय सुरि रचित जैनरामायण तथा लोकगीतों पर आधारित लोकरामायण भी गुजरात प्रान्त में रामकथा के रूप में प्रसिद्ध है।
छत्रपति शिवाजी के गुरू समर्थ स्वामी रामदास ने लधु-बृह्त रामायण की रचना की। यह मराठी साहित्य के अन्तर्गत है। सन्त एकनाथ द्वारा रचित भावार्थरामायण प्राप्त होती है। राजस्थानी भाषा में कवि मंह रचित मंहरामायण प्राप्त होती है। इसमें कुल 261 छन्द हैं। इसकी रचना सन् 1518 ई0 के आसपास हुई मानी जाती है। पंजाबी भाषा में गोविन्दरामायण के नाम से एक रामायण भी मिलती है। इसकी रचना सिखों के दसवें गुरू गोविन्दसिंह जी द्वारा हुई थी। इसमें मुख्य रूप से भगवान श्रीराम के दुष्टसंहारक और अभयदाता रूप का वर्णन हुआ है। श्रीराम की पत्नी जनकनन्दिनी सीता मिथिला की थीं। वहां की मैथिली भाषा में भगवान श्रीराम के पावन चरित का प्रणयन हुआ है। इसका नाम मैथिलीश्रीरामचरितमानस है। इसके रचनाकार श्रीरामलोचन शरण जी हैं।
इन रामायणों के अतिरिक्त और भी कई रामायण हैं जैसे- विष्णुप्रतापरामायण, मैथिलीरामायण, दिनकररामायण, शंकररामायण, शर्मारामायण, ताराचन्दरामायण, अमररामायण, नेपालीरामायण, मन्त्ररामायण, कीर्तनियारामायण, प्रीतिरामायण (ये गीतों में उपलब्ध हैं), शत्रुंजयरामायण, खोतानीरामायण, तिब्बतीरामायण, चरित्ररामायण, ककविनरामायण, जावीरामायण, जानकीरामायण आदि की रचना भारत के अतिरिक्त विदेशों में भी की गयी है। भारत की ही भांति दक्षिण पूर्व एशिया के देशों, विशेषकर थाईलैन्ड, कम्बोडिया, लाओस, मलेशिया, इण्डोनेशिया आदि में रामकथा की लोकप्रियता है। थाईलैंड में प्रचलित रामायण का नाम रामकियेन हैं, जिसका अर्थ है राम की कीर्ति। कम्बोडिया की रामायण रामकेर नाम से प्रसिद्ध है। लाओस में फालक फालाम और फोमचक्र नाम से दो रामायणें प्रचलित हैं। मलेशिया यद्यपि मुस्लिम राष्ट्र है, किन्तु वहां भी हिकायत सिरीरामा नामक रामायण का प्रचलन है, इसका अर्थ होता है रामकथा। इण्डोनेशिया में महाकवि ककविन द्वारा रचित ककविन रामायण प्रसिद्ध है।
नेपाल में भी भारत की ही भांति वहां के जन जीवन में रामकथा समा गयी है। वहां श्रीरामचरितमानस का नेपाली भाषा में कवि एवं नाटककार पहलमान सिंह स्वार ने अनुवाद किया है। श्रीभानुभक्त ने नेपालीरामायण की रचना उन्नीसवीं शताब्दी में की थी। इसका दूसरा नाम भानुभक्तरामायण भी है। इस प्रकार रामकथा का विस्तार भारत में ही नहीं अपितु कई देशांं हुआ है। अन्त में यही कहा जा सकता है कि ‘‘रामायन सत कोटि अपारा’’ या ‘‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’’।
राधेकृष्णा, प्रदीप जी बहुत अच्छी जानकारी दी आपने।
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